कुछ नेतागिरी की चाहत मे कुण्डलियाँ

अप्रैल 21, 2006 at 6:14 अपराह्न (Uncategorized)

आज फिर जाग उठी नेता बनने की चाहत, कई बार लगता है यही एक रास्ता है ऐश के साथ देश वापस आने का:(मात्राओं की गल्ती मत निकालियेगा, नेतागिरी के हिसाब से ये नगण्य टाईप की गल्ती है, वो भी अगर मानें तब) 🙂 :

//१//

कल रात सपने मे मेरे, आये परम पीठाधीश
हाथ धर सिर पर हमरे, दिन्हें खुब आशीष.
दिन्हें खुब आशीष,कि बोले भारत आ जाओ
नेक कर्म कुछ करो, कि नेता बन जाओ.
हम पूछें कि कैसे करें वोट जुगाड का हल
नोट बाँध कर ले आना बाकि देखेंगे कल.

//२//

नोट बाँध कर आये हैं अब बतलाओ कुछ चाल
कैसे चुनाव निकालें अब तुम्हि संभालो हाल.
अब तुम्हि संभालो हाल कि बेटा रिक्शा मंगवा ले
बैठ शहर भर घूम और उको रथ नाम दिला दे
कहो शहर सुरक्षा को है पहुँची बहूत जबरस्त चोट
वोट उसहि को देना भईये जौन पहूँचाये है नोट.

//३//

भईया की पहचान का नारा, लिये हुये है नाम
इनको जानो ऐसे जैसे, पेट मे बच्चा मूँह मे पान.
पेट मे बच्चा मूँह मे पान जरा कुछ फ़ितरत जानो
करवा देंगे ऐश अगर तुम हमें अपना नेता मानो.
किसी को तो दोगे तुम अपने वोट का लगईया
हम भी बुरे नही हैं फ़िर क्यूँ नाराज़ हो भईया.

–समीर लाल ‘समीर’

परमालिंक 2 टिप्पणियां

चलो आज़ पीते हैं…

अप्रैल 17, 2006 at 5:48 अपराह्न (Uncategorized)

मज़हब, मज़हब के ठेकेदार…सब अपने आप मे पूरी वज़ह हैं कि हम पीते हैं.
रुप हंस ‘हबीब’ जी, जो आज की गज़ल की दुनिया के एक सम्मानित हस्ताक्षर हैं,
ने मुझे इस गज़ल की जमीन दी और फ़िर इस गज़ल को विशेष आशिष;
आप भी गौर फ़रमायें:

चलो आज़ पीते हैं…

उठाओ जाम मोहब्बत के नाम पीते है
बहके उन हसीं लम्हों के नाम पीते हैं.

चमन मे यूँ ही बहकी मदहोश बहार रहे
हर फ़ूल से आती खुशबू के नाम पीते हैं.

मानवता की कहीं अब न बाकी उधार रहे
जपते मंत्रित उन मनको के नाम पीते हैं.

जुडते हर एक मिसरों से दिल को करार रहे
तेरे मिसरे से बनी गज़ल के नाम पीते हैं.

गली मे बसते झूठे मज़हब के ठेकेदार रहे
उनको होश मे लाने की कोशिश के नाम पीते हैं.

आती नसल को याद वो खंडहर मज़ार रहे
फ़र्जी मज़हब की मिटती हस्ती के नाम पीते हैं.

–समीर लाल ‘समीर’

परमालिंक 3 टिप्पणियां

कंप्युटर कुण्डलियाँ

अप्रैल 16, 2006 at 4:59 पूर्वाह्न (Uncategorized)

अब जब शुकुल जी कुण्डलियाँ लिखने की तैयारी कर ही रहे हैं और शायद मेरी कुण्डलियों की दुकान मंदी खा जाये, मैने सोचा कि उनके पहले ही एक बार फ़िर अवतरित हो जाऊं, बाद मे जाने क्या हाल हो. तो इस बार सुनें, कंप्युटर कुण्डलियाँ और हाँ, इस बार दोहे भी खुद के, न.३ कुण्डली जीतू भाई के लिये विशेष, वो फ़ुर्सत मे छतियाना से प्रभावित:)

कंप्युटर कुण्डलियाँ

//१//

विद्या ऐसी लिजिए जिसमे कंप्युटर का अभ्यास
खटर खटर करते रहो लोगन शिश झूकात.
लोगन शिश झूकात याकि बात रहि कुछ खास
इंजिनियर तुमको कहें हो भले टेंथ हि पास.
कह ‘समीर’ कि बाकी सब बेकार और मिथ्या
अमरिका झट पहूँचाये, है गज़ब की विद्या.

//२//

शादी ब्याह की साइट लाई गज़ब बहार
का करिहे माँ बाप भी जब बच्चे हि तैयार
जब बच्चे हि तैयार भई चैटन पर बातें
बैठ कंप्युटर खोलहि बीतीं जग जग रातें.
कह ‘समीर’ इंटरनेट ने एसि हवा चला दी
माँ बाप घरहिं रहें हम खुदहि करिहें शादी.

//३//

किताब मे लुकाई के, प्रेम पत्र पहूँचात
मार खाते घूम रहे जबहि पकड में आत.
जबहि पकड मे आत कि हम कैसे बच पाते
कंप्युटर ना आये थे जो ईमेल भिजाते
‘समीर’ अब तो पढने का नेटहि पर हिसाब
बेकग्राउंड मे चैट चले, सामने रहे किताब.

//४//

कंप्युटर के सामने तुम बैठो पांव पसार
समाचार खुब बांचियें पत्नि ना पाये भांप.
पत्नि ना पाये भांप मांगे चाय की करिये
सिर रात दबाये कहे अब काम मत करिये
कहे ‘समीर’ कि भईये बडा सफ़ल ये मंतर
उनको मेरा नमन जे बनाये ये कंप्युटर.

–समीर लाल ‘समीर’

परमालिंक 14 टिप्पणियां

मंदिर से अज़ान

अप्रैल 14, 2006 at 6:28 पूर्वाह्न (Uncategorized)

आज़ फ़िर एक धमाका, अबकी मज्जिद मे.
एक महिने के भीतर,
कभी मंदिर और कभी मज्जिद,
मगर मरेंगे तो पहले इंसान,
फ़िर ही तो होंगे वो हिंदू या मुसलमान:

मंदिर से अज़ान

अमन की चाह मे
दुनिया नई बना दी जाये
रामायण और कुरान छोड के
इन्सानियत आज पढा दी जाये.

जहां मे रोशनी करता
चिरांगा आसमां का है
सरहद को बांटती रेखा
क्यूँ ना आज मिटा दी जाये.

रिश्तों मे दरार डालती
सियासी ये किताबें हैं
ईद के इस मौके पे इनकी
होली आज जला दी जाये.

आपस मे बैर रखना
धर्म नही सिखाता है
मंदिर के कमरे से ‘समीर’
अज़ान आज लगा दी जाये.

–समीर लाल ‘समीर’

परमालिंक 10 टिप्पणियां

अनुगूँज १८: मेरे जीवन में धर्म का महत्व: अपना धर्म चलायें

अप्रैल 11, 2006 at 7:07 अपराह्न (Uncategorized)

यह अनुगूँज मे मेरा पहला प्रयास है, वो भी कुण्डली के माध्यम से, एकदम नया तरीका: 🙂
Akshargram Anugunj

कबीर मन निर्मल भया, जैसे गंगा नीर
पाछे पाछे हरि फिरे, कहत कबीर कबीर

कहत कबीर कबीर कि भईये ये कैसा जंतर
धर्म बना सिर्फ़ नाम और साधू सब बंदर

कह समीर टीवी पर हम खेलें रंग अबीर
अपना धर्म चलायें किनारे खडे रहें कबीर.

–समीर लाल ‘समीर’

परमालिंक 8 टिप्पणियां

दुआ के वास्ते जिस मुकां पे आया हूँ

अप्रैल 11, 2006 at 6:19 अपराह्न (Uncategorized)

दुआ के वास्ते जिस मुकां पे आया हूँ
वो तेरा घर है जिस मकां पे आया हूँ.

गुजारी तन्हा रातें बिछुड कर कितनी
हिसाब उन रातों का तमाम ले आया हूँ.

ज़ब्त बातें इस जुबां पर कितनी
गज़ल मे ढाल तेरे नाम ले आया हूँ.

फ़िर ना होगी 'समीर' जुदाई अपनी
साथ अपने यकीने-जहान ले आया हूँ.

–समीर लाल 'समीर'

परमालिंक टिप्पणी करे

चिंकारा बनाम इंसान -कुण्डली

अप्रैल 10, 2006 at 6:49 पूर्वाह्न (Uncategorized)

आज सलमान खान को चिंकारा के शिकार के आरोप मे ५ साल की जोधपुर मे सजा सुनाई गई। सलमान जोधपुर जेल मे भेज दिये गये।उसी के मद्देनज़र ये कुण्डलीः

चिंकारा बनाम इंसान

चिंकारा की फोटुआ दई पूजा मे टांग
भूले से गोली चले प्राण तजे श्रीमान
प्राण तजे श्रीमान पांच सालों को अंदर
जोधपुर की गरमी से डर जाये सिकंदर
बचें वो जिनने कितने इंसानों को मारा
तुझको हम न छुडहिं तूने तो मारा चिंकारा।

बचाव कवचः मेरा उद्देश्य किसी ग्रुप या संप्रदाय या व्यवस्था को ठेस पहूँचाना नही है।
यदि मेरी लेखनी से किसी की भावनायें आहत हुई हों,तो क्षमापार्थी हूँ।

परमालिंक 2 टिप्पणियां

मेरा ऊँचा साहित्य पढने का प्रयास क्या कर गया!

अप्रैल 8, 2006 at 7:34 पूर्वाह्न (Uncategorized)

आज़कल जब भी कुछ पढता हूँ, दिमाग दिशा ही बदल लेता है.अब देखिये, आज़ स्नान ध्यान कर के सोचा कुछ ऊँचा साहित्य पढूँ और लगा पढने “अमीर खुसरो” को. देखिये, क्या मैने पढा:
अब दिमाग तो दिमाग, चल पडा अपनी रफ़्तार से, बहुत समझाया, नही माना. आप भी देखें कि बिल्कुल हाथ से निकला जा रहा है और क्या क्या लिखता है कुण्डलियाँ टाईप, कुण्डलियाँ इसलिये नही कि मात्रा का टोटल (सही मात्रा की जानकारी के लिये यहाँ http://www.anubhuti-hindi.org/kavyacharcha/Chhand.htm देखें, बडी सरलता से समझाया है पूर्णिमा जी ने) नही बैठ पा रहा है(वैसे ऐसा सिर्फ़ मेरे साथ ही नही हो रहा, अच्छे अच्छे दिग्गजों के साथ यही हुआ है)…बस वहीं चुक गये. :):

//१//
कनाडा की ठंड

खुसरो दरया प्रेम का उल्टी वा की धार
जो उतरा सो डुब गया जो डुबा सो पार
जो डुबा सो पार हम तो तैर ना पायें
नाव खडी हो पास तबही डुबकी लगवायें
कहे ‘समीर’ कविराय इस मौसम मे उतरो
ठंड नही क्या वहां जहां रहते हैं खुसरो.

//२//
हेयर स्टाईल

गोरी सोवय सेज पै मुख पर डारे केस
चल खुसरो घर आपने सांझ भइ चहुं देस
सांझ भइ चहुं देस यहाँ तो भया सबेरा
अमरीका है भाई नही ये देस वो तेरा
कहे ‘समीर’ कविराय लगे है देसी छोरी
छोटे रखते केस यहां तो सबहिं गोरी.

//३//
खीर की चाह

खीर पकाइ जतन से चरखा दिया जला
आया कुत्ता खा गया तू बैठी ढोल बजा
तू बैठी ढोल बजा और मै गाऊँ गाना
फ़िर कब खीर बनाओगी बतलाओ जाना
कहे ‘समीर’ कविराय कि तेरी कोहू न समझे पीर
कुत्ते ने जो छोडी है उसहि से गटका ले कुछ खीर.

//४//
नुस्खा

खुसरो रैन सुहाग की जागी पी के संग
तन मेरो मन पीउ को दोऊ भये एक रंग
दोऊ भये एक रंग पढहिं हम गोरी से ब्याहे
जागत हर एक रैन रंग श्यामल ही पाये
कहे ‘समीर’ कविराय रंग ऐसे ना उजरो
धरे और कोई नुस्खा हो तो दे दो खुसरो.

बस, बहुत हो गया…तो मैने किताब बंद कर दी..नई किताब खोली और अबके हाथ लगे ‘कबीर’..हर दोहा पढूँ और एक ताजी खबर याद आये और बने एक और कुण्डली..पढें:

अब ताज़ा हेड लाईन्स के साथ कुण्डली:

//१//
योगा महात्म

कंकर पत्थर जोरि के मस्जिद लयी बनाय
ता चढि मुल्ला बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाय.
बहरा हुआ खुदाय उन्हे हरिद्वार भिजाओ
बिन दवा के योगा से उपचार कराओ.
कहे ‘समीर’ कविराय कि ऐ भोले शंकर
जो योगा ना कर पाये उसे तुम मारो कंकर.

(// योगा=योग का अंग्रेजी स्वरुप//)

//२//
बुश की भारत यात्रा

जाति न पुछो साधु की पूछ लीजिये ज्ञान
मोल करो तलवार का पडा रहने दो म्यान.
पडा रहने दो म्यान ये अब ना काम करेगी
अमरीकी मिसाईल से आखिर कहाँ लडेगी
कहे ‘समीर’ कविराय कि भुनाओ अपनी पाती
साहब से तुम डील कराओ ना पूछो जाति.

//३//
मेरठ मे मज़नू

पोथी पढ पढ जग मुआ पंडित भया न कोय
ढाई आखर प्रेम का पढे सो पंडित होय.
पढे सो पंडित होय नही तो रोते रहना
जो रस्ते मिल जाये उसी से इलू कहना
कहे ‘समीर’ कविराय कि कथा मेरठ की होती
तब मै भी कहता कि बेटा तू पढ ले पोथी.

(// इलू=I love you..://))

//४//
बनारस मे बम धमाका

ऐसी वाणी बोलिये मन का आपा खोये
अपना तन शीतल करे औरन को सुख होए.
औरन को सुख होए इसी से लूटिया डुबी
हिम्मत इतनी बढी कि बम बन कर के फूटी
कहे ‘समीर’ कविराय कि ये हरकत है जैसी
आतंक भी कंप जाये सजा दो इनको ऐसी.

और लिख्नना था मगर दोहा कहाँ कहाँ से लाऊँ.कुछ गैरत ने भी झकझोरा कि कब तक उधार लेते रहोगे, मन कहने लगा:

दोहे खुद के सीखिये, कब तक लिखें कबीर
खुसरो भी अब ना रहे,अब का करें समीर.
अब का करें समीर कि अब खुद ही सीखेंगे
यहाँ वहाँ से टीप कछहु तो लिख ही लेंगे
कहे ‘समीर’ कविराय तबहि हम मनहिं लोहा
कुण्डलियां जब लिखें लगा कर अपना दोहा.

अब आगे से खुद के दोहे भी लिखूँगा, झेलने तैयार रहिये.
———————————————–
बचाव कवच: इस पोस्ट से अगर किसी की भावना को ठेस पहुँची हो ( मय बुश के) तो माफ़ करियेगा. बिना माफ़ी मांगे गुजारा भी तो नही है.

बस अब आज के लिये इतना ही .बाकी फ़िर कभी.

परमालिंक 14 टिप्पणियां

महाकवि Robert Frost भाग ४: महा तपस्वी-एक नज़रिया

अप्रैल 6, 2006 at 7:19 अपराह्न (Uncategorized)

मेरे अंग्रेजी के सबसे पसंदीदा कवि Robert Frost की एक और कविता “Devotion” ने फ़िर दरवाज़ा खटखटाया. १९२८ मे ४ लाईन मे यह लिख गये. देखा, पढा, फ़िर से पढा और फ़िर से पढा-संदेशा तलाशा और ‘समीर’ चल पडे आपको बताने. मात्र मेरी समझ या नज़रिया है, गहराई मे छिपे संदेशों को खोजने की.इसी लिहाज़ से कविता पढता हूँ कि भईया आखिर क्या कहना चाह रहे हैं, क्या अंर्तद्वंद चल रहा था, उस वक्त उनके मन मे.

Devotion

The heart can think of no devotion
Greater than being shore to the ocean–
Holding the curve of one position,
Counting an endless repetition.

–Robert Frost

अब मेरा नज़रिया देखें(चेतावनी: सहमत होना आवश्यक नही है):

महातपी (महा तपस्वी)

महासागर के तट से जाना
महातप क्या कहलाता है.
लहरों का तांता लगता है
हर व्यथा नई सुनाता है.

सबके दुख को आत्मसात कर
हँसना उन्हे सिखाता है
जीने का विश्वास दिला कर
घर वापस भिजवाता है.

तटस्थ महातपी सागर का तट
जीवन सुख इसमे पाता है.
मानव इससे कुछ तो सिखो
‘समीर’ हूंकार लगाता है.

–समीर लाल ‘समीर’

अपना नज़रिया बताना ना भूलें, कि आप Devotion की चार लाइनों मे छिपे संदेश पर क्या सोचते है.

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पश्चिम मे देशी: विडंबना के दो चित्र

अप्रैल 3, 2006 at 6:35 अपराह्न (Uncategorized)

पश्चिम मे पढाई कुछ इस कदर मंहगी है और साथ ही पढाई के लिये लोन मिलने का सिलसिला इतना सरल, कि अधिकतर बच्चे लोन लेकर ही उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं.वैसे ये एक फ़ैशन भी है…ऎसे मे बिटिया की शादी मे नये आयाम इस लोन को लेकर जुड जाते है, क्योंकि हम कितना भी पश्चिम मे रहें, हैं तो देशी ही, दो चित्रों के माध्यम से अपनी दो विरोधाभाषी बात पेश कर रहा हूँ, आशा है, सब कवर हो जायेंगे.

//चित्र १//

लडके के पिता ने
लडकी के पिता से कहा
लडकी तो आपकी नायाब है
नौकरी मे भी कामयाब है
पसंद वो एकदम हमारी है
इस घर मे उसी की इंतजारी है.
मगर हमे सिर्फ़ नौकरी पेशा
लडकी ही चाहिये…
उसकी पढाई का लोन
आप ही चुकाईये…
जब चुक जाये तब आइयेगा,
फ़िर आगे बात चलाइयेगा.

//चित्र २//

लडके के पिता ने
लडकी के पिता से कहा
लोन की आप चिंता ना करें
बिटिया ने पढा है,
वही तो चुकायेगी,
नौकरी करती है अपनी
जिम्मेदारी उठायेगी.
लडकी के पिता को
बात कुछ जम गई…
और सोच यहाँ थम गई..
चलो अपना लोन भी
बिटिया के नाम कराते हैं..
ऎसॆ रिश्ते बार बार
कहाँ मिल पाते हैं.

–समीर लाल ‘समीर’

आपके पास कोई नया नज़रिया हो तो बतायें.

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